असम के कामाख्या मंदिर से लौटकर मुरारी लाल पंचम, कर्सियांग।
असम राज्य के गुवाहाटी से तकरीबन 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित कामाख्या नामक प्रदेश है। यहां से तकरीबन 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलाचल पर्वत पर स्थापित कामाख्या मंदिर में हाल ही दर्शन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
यहां पहुंचने पर कामाख्या मंदिर के बारेमें प्राप्त जानकारी अनुसार जब देवी सती अपने योगशक्ति से अपना शरीर त्याग दी,तो भगवान शिव उनको लेकर घुमने लगे। इसके बाद भगवान विष्णु अपने चक्र से उनका देह काटते हुए 51 भाग किए थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि वह भगवान शिव का मोह मां सती के प्रति भंग करना चाहते थे। इस दौरान उनके 51 भाग जहां-जहां गिरे,वह 51 शक्तिपीठों के नाम से जाने गए। उस 51 भागों में से माता की योनि इसी कामाख्या में गिरी थी। इसलिए यहां माता की योनि की पूजा भी की जाती है। माता की योनि होने के कारण यह माता रजस्वला भी होती है। नीलाचल पहाड़ी में भगवती सती की योनि(गर्भ) गिरने के बाद उस योनि ने एक देवी का रूप धारण कर लिया। वहां कामाख्या देवी शक्तिपीठ की स्थापना हुई,जिसे देवी कामाख्या के रूपमें जाना जाता है।
पौराणिक मान्यता अनुसार माता की योनि नीचे गिरकर एक विग्रह में परिवर्तित हो गई थी। यह आज भी मंदिर में विराजमान है।फलस्वरूप आज भी माता की वह प्रतिमा रजस्वला होती है। इस मंदिर में देश - विदेश के विविध इलाकों से लाखों श्रद्धालु व भक्त दर्शन के लिए आते हैं। कामाख्या देवी या शक्ति के प्रधान नामों में से एक नाम है। यह तांत्रिक देवी हैं व काली व त्रिपुर सुंदरी के साथ इनका निकट संबंध है।
मां सती के 51 शक्तिपीठ में से यह कामाख्या में आया हुआ शक्तिपीठ का सबसे अधिक महत्व बताया गया है। माता अपने भिन्न -भिन्न स्वरूपों में अनेक जगह पर निवास करती है। उसी स्वरूपों में से एक शक्तिपीठ इस कामाख्या के मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर माता सती के प्रतीक स्वरूप है। इसके अंदर मां सती यानि मां भगवती की महामुद्रा का निर्माण किया गया है। कामाख्या मंदिर को तंत्र -मंत्र की सिद्धियों के लिए श्रेष्ठ स्थल माना जाता है।असम व पूर्वोत्तर बंगाल में देवी कामाख्या की पूजा का बड़ा ही महात्म्य बताया गया है।
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