स्वामी सत्यप्रकाश ने स्वयं को जानने का दिया संदेश
सिलीगुड़ी : जब एक तरफ समाज पाश्चात्य सभ्यता की ओर तेजी से आकर्षित हो रहा है, तब एक बेटा अपने पिता की पुण्यतिथि पर सत्संग का आयोजन किया। दो दिवसीय सत्संग का शुक्रवार शाम समापन हो गया। यह आयोजन शहर से सटे सुकना निवासी नितिन छेत्री ने अपने आवास पर किया। इस सत्संग में भगवत भजन व आशीर्वचन के लिए गुरु महर्षि मेंहीं परम हंस आश्रम भागलपुर से साधू-संतो की टोली उनके आवास पर पधारी। नितिन छेत्री ने बताया की एक वर्ष पहले उनके पिता बलकृष्ण छेत्री का स्वर्गवास हो गया था। उनके पिता सद्गुरु महर्षि मेंहीं परम हंस के शिष्य थे। अपने जीवनकाल मे उन्होने कई बार सत्संग का आयोजन किया था। इसलिय उनके दिवंगत होने के एक वर्ष बाद पिता के स्मरण मे संतमत सत्संग का आयोजन किया। इस सत्संग मे परिवार समेत अधिकाधिक संख्या मे उनके बंधु-बांधव सम्मिलित हुए। भागलपुर स्थित कुप्पाघाट आश्रम के प्रचारक स्वामी सत्यप्रकाश ने पाश्चात्य सभ्यता की ओर बढ़ रहे इस समाज के लोगों को स्वयं को जानने की जरूरत है। स्वयं को जानने मात्र से ही परमात्मा से मुलाक़ात संभव है। परमात्मा का अर्थ परम ज्ञान से है। परम ज्ञान की प्राप्ति से मनुष्य सदाचार, सौहार्द, परोपकार और ईश्वर भक्ति की दिशा मे आगे बढ़ सकेगा, जो जन कल्याण के साथ परब्रमह द्वारा मानव रचना के उद्देश्य को पूरा करेगा।" />
पिता की पुण्यतिथि पर सुकना मे संतमत सत्संग का आयोजन
स्वामी सत्यप्रकाश ने स्वयं को जानने का दिया संदेश
सिलीगुड़ी : जब एक तरफ समाज पाश्चात्य सभ्यता की ओर तेजी से आकर्षित हो रहा है, तब एक बेटा अपने पिता की पुण्यतिथि पर सत्संग का आयोजन किया। दो दिवसीय सत्संग का शुक्रवार शाम समापन हो गया। यह आयोजन शहर से सटे सुकना निवासी नितिन छेत्री ने अपने आवास पर किया। इस सत्संग में भगवत भजन व आशीर्वचन के लिए गुरु महर्षि मेंहीं परम हंस आश्रम भागलपुर से साधू-संतो की टोली उनके आवास पर पधारी। नितिन छेत्री ने बताया की एक वर्ष पहले उनके पिता बलकृष्ण छेत्री का स्वर्गवास हो गया था। उनके पिता सद्गुरु महर्षि मेंहीं परम हंस के शिष्य थे। अपने जीवनकाल मे उन्होने कई बार सत्संग का आयोजन किया था। इसलिय उनके दिवंगत होने के एक वर्ष बाद पिता के स्मरण मे संतमत सत्संग का आयोजन किया। इस सत्संग मे परिवार समेत अधिकाधिक संख्या मे उनके बंधु-बांधव सम्मिलित हुए। भागलपुर स्थित कुप्पाघाट आश्रम के प्रचारक स्वामी सत्यप्रकाश ने पाश्चात्य सभ्यता की ओर बढ़ रहे इस समाज के लोगों को स्वयं को जानने की जरूरत है। स्वयं को जानने मात्र से ही परमात्मा से मुलाक़ात संभव है। परमात्मा का अर्थ परम ज्ञान से है। परम ज्ञान की प्राप्ति से मनुष्य सदाचार, सौहार्द, परोपकार और ईश्वर भक्ति की दिशा मे आगे बढ़ सकेगा, जो जन कल्याण के साथ परब्रमह द्वारा मानव रचना के उद्देश्य को पूरा करेगा।
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