विश्वास,आस्था व पवित्रता की देवी पाथीभरा : एक रोचक तथ्य से परिपूर्ण
नेपाल के ताप्लेजुंग जिले स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री पाथीभरा भगवती की मंदिर में दर्शन के लिए जाने के बाद यहां से उपलब्ध जानकारी अनुसार
विश्वास,आस्था व पवित्रता की देवी पाथीभरा की पवित्र स्थल नेपाल स्थित ताप्लेजुंग जिले के सदर मुकाम फुंगलिंग से 18. 4 किलोमीटर पूर्वोत्तर की ओर 3784 मीटर की ऊंचाई में अवस्थित है।
इस मंदिर में पूरे वर्ष भक्तों का आवागमन जारी रहता है। अनाज से परिपूर्ण भरे एक बर्तन,जिसे नेपाली में पाथी कहा जाता है,ऐसे सुंदर,मनमोहक आकृति लिये हुए पाथीभरा पहाड़ के शिखर में देवी की उत्पत्ति स्थल रहने के कारण पाथीभरा देवी को श्रद्धा व भक्तिपूर्वक बुलाने का कार्य किया जाता है।
पाथीभरा लिम्बू जाति के आराध्या देवता का थान है, जो हिन्दू व बौद्ध समेत पूजने वाली महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
ताप्लेजुंग नेपाल के मूल निवासी लिम्बू समुदाय के लोग पाथीभरा को मुकुम्लुंग के नाम से पहचानते हैं। लिम्बू भाषा में मुकुम का अर्थ शक्ति व बल होता है व लुंग का अर्थ पत्थर की मूर्ति या प्रतिमा होता है। ताप्लेजुंग जिले के प्रांत नंबर-एक में स्थित पाथीभरा माता मनोकामना पूर्ण करनेवाली देवी -देवियों की महादेवी मानी जाती है।
प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री पाथीभरा भगवती की दर्शन करने हेतु जाते वक्त नेपाल के पशुपतिनगर से तकरीबन सात-आठ घंटे वाहन के जरिये दूरी तय करना पड़ता है। पशुपतिनगर से वाया फिक्कल, इलाम,फिदिम,ताप्लेजुंग,सुकेटार होते हुए वाहन जानेवाले अंतिम पड़ाव सानो फेदी पहुंचना पड़ता है। यहां से पाथीभरा मंदिर के लिए तकरीबन चार -पांच घंटे की पैदल यात्रा आरंभ होता है। वाहन के जरिये अंतिम पड़ाव तक पहुंचने खातिर फोर ह्वील वाहन लेकर जाना आवश्यक है। टू ह्वील वाहन लेकर जाने पर सुकेटार से वाहन के अंतिम पड़ाव के बीच रास्ते की अवस्था अत्यंत खराब होने के कारण इस वाहन से अंतिम पड़ाव तक नहीं पहुंचा जा सकता है।
पैदल यात्रा के दौरान आधे से अधिक रास्ते में वर्फ से ढ़की सफेद चादरों की भांति रास्ते को तय करना पड़ता है। पाथीभरा मंदिर काफी ऊंचाई पर होने के कारण जैसे-जैसे श्रद्धालु व भक्त ऊपर की ओर चढ़ते जाते हैं,वैसे-वैसे आक्सीजन की कमी होने लगती है। इसलिए इस मंदिर की दूरी कम होने के बावजूद श्रद्धालुओं व भक्तों को तय करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
जानकारी अनुसार कई लोगों को पैदल यात्रा के दौरान जब परेशानियां होने लगती है,तब वे आधे रास्ते से ही लौट आते हैं। इस क्षेत्र में नहीं चल सकने वाले लोगों को पीठ पर लादकर मंदिर तक पहुंचाने वाले लोग मिलते हैं,जो लोगों के वजन के हिसाब से रूपये लेते हैं। रास्ते में तकरीबन आधे रास्ते तक ही बीच-बीच में छोटी-मोटी दुकानें दिखती है,जहां चाय,जूस आदि मिल जाती है,उसके बाद कुछ नहीं मिलता है। इसलिए इन बातों को ध्यान में रखकर पेयजल,नास्ते के लिए कुछेक सामग्री आदि साथ में रख लेना आवश्यक है।
पैदल यात्रा के दौरान पूजन सामग्री के अलावा पहाड़ पर नहीं फिसलनेवाली स्पोर्ट्स जूते,सहारा के लिए लाठी,वर्फबारी व बरसात होने के दौरान शरीर को ढ़कने के लिए प्लास्टिक अथवा बरसाती,जैकेट,टोपी,गुलदस्ता आदि लेकर जाना आवश्यक है।
पाथीभरा मंदिर के इर्द-गिर्द नास्ते तो क्या चाय-पानी तक नहीं मिलता है। वर्तमान में इसकी व्यवस्था करने के लिए इक्के -दुक्के दुकानों को तैयार करने का कार्य चल रहा है।
कर्सियांग से मुरारी लाल पंचम ।